Sunhare Pal

Tuesday, December 20, 2011

आज का दिन



आज का दिन

आज का दिन खूनी था शायद, तभी तो- अभी वह घर से निकलकर पचास कदम आगे बढ़ भी नहीं पाया था कि........
बस! एक मोड़ ही मुड़ा था। सीधी और चाौड़ी सड़क थी। सुबह के सात बजे वह निकला था, तब हल्का धुंधलाका था पर अब सात बजकर पांच मिनिट होने को हैं, चारों ओर पूरा उजियाला पसर चुका है। स्ट्रीट लाईट बंद हो चुकी है। वीरान सी सड़कों पर कुछ इक्के दुक्के लोगों के होने का एहसास भर हुआ था उसे।
वे लोग- उनके चेहरे कपड़े से लिपटे हुए थे। उसे लगा वे सफाई कर्मचारी है, आज शायद सड़क पर कोई विशेष सफाई अभियान हो। पर वह गलत था। वह सफाई करने वाले नहीं थे, बल्कि हमलावर थे। यकायक उन्होंने आकर उसे घेर लिया और प्रहार के लिए जैसे उनके डण्डे उठे, वह भागा। उसने न इधर देखा न उधर बस पांव जिधर उठ गये वो सरपट दौड़ पड़ा। उसने बेतहाशा दौड़ बढ़ाई। वे पीछे थे, कुल गिनती में चार लोग।
वह दौड़ रहा था और दौड़ते-दौड़ते ही उसने निर्णय किया- कहीं पनाह लेनी होगी। एक घर सामने था- मिश्राजी का।
वह उन्हें अच्छी तरह जानता था। घर की फाटक खोल भीतर घुसने में वह सफल हो गया। दरवाजे तक पहुंच पाता इससे पूर्व ही उन हमलावारों में से एक के लठ्ठ का प्रहार उसके पांव पर गिरा। पिंडली पर लगी भंयकर चोट के कारण वह थोड़ा लड़खड़ाया इतने में दूसरा प्रहार उसके कंधे को तोड़ गया। वह संभल नहीं पाया। वहीं अपने सिर को दोनों हाथों से बचाते हुए उकड़ू बैठ कर सहायता के लिए पुकारने लगा। अब तो वे चारों उस पर पिल पड़े। वे उसे इस तरह पीट रहे थे मानो रूई धुन रहे हो। तड़ातड तड़ातड़, प्रहार पर प्रहार। उसकी भयानक चीखे और डण्डे बरसने की आवाजे दोनों घुलमिलकर खौफनाक रिदम बन गई थी।
जानलेवा हमला हो रहा था उस पर। डण्डों के अगले मुहाने पर लगभग 6 इंच तक कीले ठुकी हुई थी। जो पिटाई के साथ साथ उसकी चमड़ी भी उधेड़े जा रही थी। धड़ाधड़
धड़ाधड़........
आज का दिन ममता भरा दिन था शायद, तभी तो- सड़क बुहारते हुए उसकी नजर इस हमले पर गिरी। वह झाडू हाथ में लिए हुए अपनी सरकारी ड्यूटी पर थी। सड़क से कचरा हटा रही थी। इसी दौरान उसे दौड़ते हुए बूटों का स्वर सुनाई पड़ा। सामने देखा- एक युवक के पीछे कुछ लठैतों को दौड़ते हुए। वह कुछ समझ पाती तब तक वह लड़का एक घर के भीतर घुस गया, पर वह वहीं बाहर संकरी बाऊंडरी में फंसकर धिर चुका था। वे उसे निर्दयता से पीट रहे थे। वह उस जगह के लिए दौड़ी जहां ये हादसा हो रहा था। उसने उन्हें रोकते हुए ललकारा- ‘‘खबरदार जो किसी ने अब इस पर हाथ भी उठाया तो.......क्या मार डालोगे उसे?कमीनों ऽ ऽ ...... एक निहत्थे पर चार चार पिल रहे हो। शर्म नहीं आती तुम्हें.......दफा हो जाओ यहां से नहीं तो एक एक को टांग तोड़कर .....’’दहाड़ते हुए उसके हाथ में झाडू मजबूती से कुछ इस तरह ऊपर उठ आया मानो एक सशक्त हथियार हो। उसने हमलावरों में से एक का हाथ पकड़ कर धक्का दिया और घेरे को तोड़ती हुई भीतर घुस कर उसने अपना आंचल पीटने वाले पर फैलाकर ढ़कने की कोशिश में वह उससे लिपट गई। इसी बीच एक वार से खनखनाकर कांच की सारी चूडि़या झड़ गई।
अचानक हुए इस व्यवधान से हमलावर कुछ ठिठके। वह गुस्से में भरी हुई फिर बरसी- ‘‘कुछ तो शर्म करो। ओ मोहल्ले वालो क्या तुमकोे कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा है ? आंख कान वाले
अंधों-बहरो.....जरा सुनो तो....क्या सबके सब नपुसंक होकर दुबके बैठे हो? खोलो, अपने दरवाजे खोलो......’’
समय की नजाकत को समझ हमलावर भाग खड़े हुए। अब वह उस भयभीत युवक को सहला रही थी। अपने आंचल से उसके बहते खून को पौंछते हुए उसने पुचकारा- ‘‘क्यों ये दुष्ट तेरी जान के पीछे पड़े थे...........कहां कहां चोट लगी तुझे......मुझे बता तो......’’
अब तक दबे बैठे, या तमाशा देखने वाले सभी लोग बाहर निकल आये थे। सभी के मुख से उसके गुणगान हो रहे थे। कोई कह रहा था.......जन्म देने वाली से भी बढ़कर, नवजीवन देने वाली मां’’, किसी ने कहा- ‘‘उसके जीवन की रक्षा कर सचमुच वह यशोदा मैया बन गई है।’’ यहां वे इस बात को सब नजरअंदाज कर चुके थे कि यहीं वो महिला है जिसने अभी-अभी मोहल्ले वालो को गाली गलौच दी थी। उन्हें बेशर्म और खुदगर्ज कहकर उनकी गैरत को ललकारा था।
आज का दिन शायद मानवीय सभ्यता के कलंक अछूत दर्शन का भी था। तभी तो- मुर्दा बस्ती के उन लोगों ने यह भी कहा था- हरिजन स्त्री है, इसे क्या मुंह लगाना यह तो हर रोज ही सड़क बुहारने आती है।
‘जल ही जीवन है’ जिसे वह घायल युवक मांग रहा था। वह युवक जो कि उनकी पिछली सड़क पर रहने वाले डगवाल सा. का बेटा था जिसे वे भलीभांति पहचानते थे। कोई भी उसे पानी नहीं दे रहा था क्योंकि वह उस हरिजन स्त्री की गोदी में गिरा पानी मांग रहा था। एक मेहतर ने इसे छू लिया है। अब कौन अपना धर्म भ्रष्ट करें?
मैया अपने आंचल से उस पर हवा कर रही थी। पर पानी...? पानी...वो कहां से लाती? तमाशाबीन लोग खामेश से इस बेबसी का अनोखा खेल देख रहे थे। उसने हाथ जोड़कर मोहल्ले वालो से प्रार्थना की। तब जाकर किसी एक का मन पसीजा और विकल्प के रूप एक आईडिया उसको क्लिक हुआ होगा तभी तो वह एक डिस्पोसेबल ग्लास में पानी भर कर दूर रख गया। उस मैया ने उसे सहारा देकर उठाना चाहा तो वह उठ नहीं पाया। उसका कंधा झूल गया। मैया ने चम्मच के लिये फिर याचक दृष्टि दौड़ाई। कोई समझकर प्लास्टिक का चम्मच लाता इससे पूर्व ही उस युवक की पत्नी दौड़ती हुई चली आई। उसके पीछे पीछे उसकी सगी मां भी थी। सचमुच यह एक संवेदनाशून्य दिवस होता अगर वे लोग नहीं आयी होती तो? उनके आने से सोये लोगों की संवेदनाएं अब जाग चुकी थी।
आज का दिन एक सुनियोजित अपराध का भी था। पूरणमल ठेकेदार बरसो से वर्मा स्टील कम्पनी में टेण्डर भरता आ रहा था। अभी तक कभी ऐसा नहीं हुआ कि टेण्डर उसे न मिला हो या किसी ने कोई मीनमेख भी निकाली हो। बरसो से वेस्ट का मलबा वही उठाता आ रहा है। इस बार देखो- ये नया नया लड़का क्या आया, अकल की गर्मजोशी दिखाने लगा। जोड़ बाकि की गणित तो पिछले भी सब जानते थे पर वे सब भरी पूरी उम्र के घर गृहस्थी वाले लोग थे। उनकी भी अपनी जरूरते थी। पैसे के बिना सब सून, सेटल था ऊपर से लेकर नीचे तक।
‘‘अब इसने आकर ऊपर बैठे अफसर को कौनसा पान चबवाया कि इस बार का टेण्डर उसके हाथ ही निकल गया। मेरा तो सारा धंधा ही चैपट कर दिया इस कल के लौंडे ने.......’’पिच्च करके पीक थूकते हुए पूरणमल ने इस छोरे को सबक सीखाने की ठान ली थी। किसी को कानों कान खबर न हो और काम हो जाय। ऐसा ही तरीका था पूरणमल का।
आज का दिन भंयकर असमंजस से गुथमगुत्था होने का दिन भी था शायद। किसने हमला करवाया? कौन थे हमलावर? क्या रंजिश थी? कुछ लूटकर तो नहीं ले गये?
सब यथावत था। जेब को हाथ तक नहीं लगाया गया, घड़ी, चेन, मोबाईल सब यथावत थे तो फिर क्यों जानलेवा हमला हुआ? किसलिए और किसने किया अपराध? जितने मुंह उतनी बाते। जितनी संवेदनाएं उतने दिमाग। खोज लाये दूर की कौड़ी पर-
किराये के अपराधी कहीं पकड़ में आते हैं क्या? आज का दिन अपराध का ही नहीं भ्रष्ट प्रशासनिक दर्शन का भी था। पिटाई करने वालो के खिलाफ एफ.आई.आर. भी दर्ज हुई। किसने हमला करवाया और कौन थे हमलावर, आखिर पता लग ही गया।
जब सब खोज खबर हो गई तो क्यों नहीं पकड़े गये अपराधी? प्रश्न सिक्के के एक पहलू की तरह सामने था तो उत्तर भी सिक्के के दूसरे पहलू की तरह पीछे दबा, छिपा झलक रहा था। सभी ने जान लिया था- पिटने वाले युवक ने भी, उसके घर वालों ने भी, तमाम रिश्तेदारों ने भी यहां तक कि मोहल्ले वालों ने भी। पुलिस रिपोर्ट का कोई परिणाम नहीं निकलेगा। कोई नहीं पकड़ा जायेगा क्योंकि उन गुण्डों में से दो पुलिस वालों के बेटे थे और बाकि बचे दो राजनैतिक संरक्षण पाये हुए शराबी कबाबी। जिनका वास्ता तत्कालीन विधायक से होता हुआ कुछ और ऊपर तक.....शायद भाई भतीजे थे।
तो आज का दिन.....................अभी भी बहुत कुछ शेष है, ये किस्सा अंतहीन है। कहां तक की बात मैं कहूं?