Saturday, June 23, 2012
हस्ती इनकी
बीच रास्ते में चलते
कई बार आ घेरती है रेवड़
रेवड़, जिसकी भेड़चाल
देखकर मन विमोहित सा
हो उठता है
सिर झुका कर
एक के पीछे एक लग
अनुसरण करते जाना
क्या यही हैं
इनकी करूण गाथा ?
रेवड़, जो लिए चलती है
एक कुत्ता, अपने संग
जो चैकसी करता है
रखवाली भी कभी कभी
मार्गदर्शन लेना
वो भी एक कूकर से
क्या नहीं है
भीरूता इनकी?
रेवड़, जो धरती पर
भूचाल बन बढ़ती जाती
तनिक टूटी या बिखरी तो
फिर आ जुड़ती
चुम्बक जैसी खींच कर
फिर सट जाती झुंड में
हां, यही है
विराट हस्ती इनकी
रेवड़ कह लो इनको या झुंड
झुंड में रहना, जीना, खाना
झुंड के पीछे झुंड
दसियों बीसियों नहीं
सैंकड़ो की तादाद में होते हुए
रोक दे जो बहते रास्ते
क्यों कहते हो उसे तुम
एक निरीह भेड़
एक सूखा गुलाब
छूट गया हूं मैं
पिछली कक्षा में पढ़ी
किताब की तरह
कर लिए गये
जिसके सारे सवाल हल
और पाठों का भी
दोहरान हो चुका
कई बार
परीक्षाओं के उपले
थेप चुका हूं बार-बार
फेल और पास की
किश्ती खै चुका हूं
जाने कितनी बार
हो चुके है सब बेमानी
इम्तहान और परिणाम
की घोषणा के साथ
बदल गया है साल
पीले पड़े गये कागज तमाम
किताब हुई पुरानी
जिस पर लगें है आज भी
निशान, अर्थो और महत्वपूर्ण
टिप्पणियों के साथ
पहले जैसे अब नहीं भरती
पुरानी किताब
फरफराहट का दंभ
आ गई है नई किताब
जो सहेज दी गई
भूरे कवर के साथ
नई किताब की चमक में
छिप गया
पिछले साल का कलेण्डर
जिसपर आया था कभी
वेलेन्टाईन एक बार
कह रहा है आज भी
भीतर रखा
एक सूखा गुलाब
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