Sunhare Pal

Sunday, April 3, 2011



लुक छिप लुक छिप खेली


मेरे संग ओ मेरी साथिन


ओ मेरी सहेली


अब तुम बड़ी हो गई हो


काव्य मधुरिमा


और उषा की चहेती हो गई हो


सलौने शब्दों में गूंथी


मनको की माला सी हो गई हो


कुहके अम्बुए की डाल


मेरे लिए तुम अब पहेली हो गई हो


खिले सुमन सी


अब तुम बासन्ती पल हो गई हो


विचरे रीते मेघ


रूई के फाहे सी धवल हो गई हो


पवन हिंडोले संग


डोलती माझी की नैया हो गई हो


अब तुम बड़ी हो गई हो


विमला भंडारी

1 comment:

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

आदरणीया विमला भंडारी जी
सादर प्रणाम !

नई कविता के लिए आभार !
बहुत सुंदर है …
ओ मेरी साथिन
ओ मेरी सहेली
अब तुम बड़ी हो गई हो

सीधे हृदय में उतर कर स्नेह सौहार्द का झरना बहाते अद्भुत् भाव ! बहुत सुंदर !

खिले सुमन सी
अब तुम बासन्ती पल हो गई हो
विचरे रीते मेघ
रूई के फाहे सी धवल हो गई हो


रचना का शब्द-शब्द मानो वर्तमान की अंगुली थामे अतीत से साक्षात् कर रहा है …

आपकी लेखनी एक ओर जहां बाल हृदय तक संप्रेषित होती है , वहीं आम पाठक को भी विमुग्ध करने में सक्षम है … साधुवाद !

नव संवत् भी आ गया है …

नव संवत् का रवि नवल, दे स्नेहिल संस्पर्श !
पल प्रतिपल हो हर्षमय, पथ पथ पर उत्कर्ष !!

चैत्र शुक्ल शुभ प्रतिपदा, लाए शुभ संदेश !
संवत् मंगलमय ! रहे नित नव सुख उन्मेष !!

*नव संवत्सर की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !*


- राजेन्द्र स्वर्णकार