Friday, May 28, 2010
जिन्दगी यहां
Saturday, May 8, 2010
कहां खो गये
जागे थे भाग कभी
बजे ढ़ोल, बंटे बताशे भी
लोरी और पालने के स्वर भी वहीं
फिर आज न जाने वे नन्दलाल कहां खो गये?
मां आज तू नितान्त अकेली हो गई।
नहला धुलाकर
साफ-सुथरे कपड़े पहना
लगा दिये थे तूने काजल के टीके
फिर आज न जाने वो झूलेलाल कहां खो गये ?
मां आज तू नितान्त अकेली हो गई।
कई दौरो में
ऐसा भी इक दौर आया
तब मां मैंने तुझे खूब नचाया था
फिर आज न जाने सारे चुम्बन कहां खो गये?
मां आज तू नितान्त अकेली हो गई।
पुरवाई चली जोरसे
या बिजली ने ली अंगड़ाई
दुबके सिमटे ये उत्पाती पतंगे
फिर आज न जाने किस छोर में कहां खो गये?
मां आज तू नितान्त अकेली हो गई।
टिफन और तरकारी
के ताने बाने बुना करती थी
भोर सवेरे में
फिर आज न जाने वो सितारे कहां खो गये?
मां आज तू नितान्त अकेली हो गई।
सुनो विशाखा की मां
आओ तो दिलावर की अम्मा
सम्बोधन के तार
फिर आज न जाने ढ़ीले कहां से हो गये?
मां आज तू नितान्त अकेली हो गई।
पल्लू में लिपटे
पल्लू छूटे तो दुख सताये
तुझे बिन बताये
फिर आज न जाने वे छैने कहां खो गये?
मां आज तू नितान्त अकेली हो गई।
डांटकर तो कभी
पुचकार कर तूने सिखाये थे
चाहत के सबक
फिर आज न जाने वे सबब कहां खो गये?
मां आज तू नितान्त अकेली हो गई।
झरबेरी हो चाहे
खट्टी-मीठी, तेरी नयनों का मधु
बरसा था दिनरैन
फिर आज न जाने तेरे दीवाने कहां खो गये?
मां आज तू नितान्त अकेली हो गई।
तूने जनी संताने
गूंजे भी थे तेरे घरोंदे
खामोश सदा के लिए
फिर आज न जाने ये वीराने क्यों हो गये?
मां आज तू नितान्त अकेली हो गई।
आंचल को फैलाये
तूने तो ढ़क दिये थे
सबको गिन गिनकर
फिर आज न जाने सभी शावक कहां खो गये?
मां आज तू नितान्त अकेली हो गई।
ना कोस किस्मत को
ना दे कर्मो की दुहाई
जमाने की द्रुत गति में
फिर आज न जाने हम सब कहां खो गये?
मां आज तू नितान्त अकेली हो गई।