तो घर देता है सम्बल
घर में -
मां है , बाबूजी है
जिनकी छाह तले
और भी किले है ।
नेह के धागों में
मन के मनके पिरोकर
छककर करता है अमृतपान
फिर बढ़ता है -दरखत मनोबल का
उन पर चढ़ने लगती है
स्वार्थों की फंफूद
आकाशीय जड़े महत्वकांक्षाओं की
तोड़ लेती है
क्षणांश में
बूढ़ा जाते है मां बाप
1 comment:
बहुत सुन्दर!!
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