Sunhare Pal

Friday, October 2, 2009

बूढ़ा जाते है मां बाप


टूटता है जब मनोबल

तो घर देता है सम्बल
घर में -

मां है , बाबूजी है
जिनकी छाह तले
और भी किले है ।

नेह के धागों में
मन के मनके पिरोकर
छककर करता है अमृतपान
फिर बढ़ता है -दरखत मनोबल का
धीरे-धीरे
उन पर चढ़ने लगती है
स्वार्थों की फंफूद
बरगदसी बाहें फैलाये
आकाशीय जड़े महत्वकांक्षाओं की
तोड़ लेती है
सारे सरोकार, और
क्षणांश में
बूढ़ा जाते है मां बाप

1 comment:

Udan Tashtari said...

बहुत सुन्दर!!