Sunhare Pal

Friday, October 9, 2009

रिंगटोन



बेटी का फोन था
‘मुझे बचा लो मां’ का रिंगटोन था
कल फिर उन्होंने
मुझे मारा और दुत्कारा
तुम औरत हो
तुम्हारी औकात है -
पैर की जूती
जूती ही बनी रहो
खबरदार!
जो सिर उठाने की कोशिश की
तो कुचल दूंगा
देखा नहीं क्या
तुमने कल का अखबार
कल का नहीं तो
परसों का ही देख लो
रोज छपती है
तुम जैसी कितनी ही
बेमौत मरती है
मेरा क्या कर लोगी?
यहां तो पुलिस भी बिकती है
जिसकी लाठी
भैंस उसी की ही होती है
जिसे समझती हो तुम
अपना खूबसूरत चेहरा
उसी को वो तेजाबी जलन दूंगा
कि फिर तुम ना कहने से पहले
सोचोगी दस बार,
सैकड़ों बार, हजारों बार
बेटी का फोन था
मुझे बचा लो मां का रिंगटोन था

2 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

bahut dardnaak manzar...aaj bhi betiyan aise hi zindagi jeeti hain.

gazalkbahane said...

सार्थक अभिव्यक्ति -बधाई
लेकिन कुछ और कसाव भी मांग रही है रचना
श्याम सखा श्याम