Friday, April 23, 2010
हर बार
ऐसा क्यों होता है
कि हर बार
मुझे ही हारना होता है
फिर चाहे वह
मेरी तरूण अवस्था हो
या यौवन का मधुमास
मेहनत का फल
क्यों खट्टा ही
पकता है मेरी
अम्बुए की डाल
मेरे सामने हर बार हार ही होती है
जीत से तो वास्ता
मेरा कभी पड़ा नहीं
छद्म रूपधारी देवताओं की तरह
उसे तुम पहले ही हथिया लते हो
क्यों मुझे भोगना होता है
सारा का सारा
कुंठा और संत्रास
सीता हरण का अंश हो
या अग्नि परिक्षण का दंश
उठती है अंगुली तुम्हारी
हरदम मेरी ओर
जो मुझे बोना करती
बोनसाई कर देती है
खुद अपनी ही नजर में
कठघरे में हरदम
घिरी मैं ही क्यों होती हूं
क्यों नहीं मैं खुलकर
हंस पाती हूं
महफिल की मैं बात नहीं करती
अपने ही घर में
जी भी नहीं पाती
कई बार पूछती हूं मैं अपने आप से
ये सवाल
क्यों जीत पर मेरा नहीं अख्तियार
क्यो होता है मेरे साथ ऐसा हरबार
कि हर बार
मुझे ही हारना होता है
फिर चाहे वह
मेरी तरूण अवस्था हो
या यौवन का मधुमास
मेहनत का फल
क्यों खट्टा ही
पकता है मेरी
अम्बुए की डाल
मेरे सामने हर बार हार ही होती है
जीत से तो वास्ता
मेरा कभी पड़ा नहीं
छद्म रूपधारी देवताओं की तरह
उसे तुम पहले ही हथिया लते हो
क्यों मुझे भोगना होता है
सारा का सारा
कुंठा और संत्रास
सीता हरण का अंश हो
या अग्नि परिक्षण का दंश
उठती है अंगुली तुम्हारी
हरदम मेरी ओर
जो मुझे बोना करती
बोनसाई कर देती है
खुद अपनी ही नजर में
कठघरे में हरदम
घिरी मैं ही क्यों होती हूं
क्यों नहीं मैं खुलकर
हंस पाती हूं
महफिल की मैं बात नहीं करती
अपने ही घर में
जी भी नहीं पाती
कई बार पूछती हूं मैं अपने आप से
ये सवाल
क्यों जीत पर मेरा नहीं अख्तियार
क्यो होता है मेरे साथ ऐसा हरबार
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3 comments:
यही सवाल मैंने भी पूछे हैं कई बार विमला जी ....!!
bahut hi badiya shaayad bahut logo kee jindgi se judi hui
lekin ab aur nahi....
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