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Saturday, July 31, 2010

बेटी की सगाई पर



बेटी की सगाई पर
पगलाया मन
बर्फ की चादर हटा
खिल आये यादों के सुमन
सुधारस पगी
मन की फांकों
से टपकने लगा
शहतूती रस
अमृत घोलती
वाणी का मिठास
बोलने लगा था यूं
कहो-
दोगी जीवनभर साथ
कशोर वय को
कुंआरे मन को
सगाई की रस्म में
अगूंठी की परिधि से टांकना
या था हाईवे से
पगडण्डी का ये इशारा
अठ्ठाईस बरस पीछे
छूटा था जो समंदर
आज फिर
नई गहराई को नाप रहा
‘जीवनसाथी’ शब्दार्थ की
किश्ती को ‘ताप’ रहा
जीवनभर का साथ
संकल्पों से भरा
यह अनूठा विश्वास
कहो- दोगे जीवनभर साथ ?

7 comments:

vandana gupta said...

वाह एक बार फिर उन ही क्षणों को जीना और यादो मे खोना…………………बेहद भावप्रवण्।
कल (2/8/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com

madhav said...

बहुत भावप्रवण कविता.दिल को छूने वाली.
माधव नागदा

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

आदरणीया विमला भंडारी जी
नमस्कार !

बेटी की सगाई के बहाने बीती अनुभूतियों की स्मृतियों को जीना …
सच , यादों के सुमन कभी गंधहीन नहीं हो सकते !
सुंदर भाषा - शिल्प में पिरोया गया सुंदर , सौम्य - शिष्ट कथ्य हम तक पहुंचाने के लिए बधाई !
आभार !!

अंतर्जाल पर आपको पा'कर हार्दिक प्रसन्नता हुई , स्वागत !
शस्वरं पर भी आपका हार्दिक स्वागत है , अवश्य आइए…

- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

आदरणीया दीदी

प्रणाम !

आपकी नई पोस्ट का इंतज़ार है ।
कितनी बार आपके यहां आ चुका हूं नया ढूंढ़ने के लिए !


शुभकामनाओं सहित …
- राजेन्द्र स्वर्णकार

Sushil Joshi / सुशील जोशी said...

बेहद भावपूर्ण कविता है विमला जी। एक-2 पंक्ति अर्थपूर्ण है। बधाई हो आपको इस सुंदर रचना के लिए

shanti lal jain said...

बहुत भाव प्रवण है। हम इसे साभार आपके नाम के साथ सगाई कार्ड पर लेना चाहते हैं । कृपया इजाजत दें।

shanti lal jain said...

बहुत भाव प्रवण है। हम इसे साभार आपके नाम के साथ सगाई कार्ड पर लेना चाहते हैं । कृपया इजाजत दें।