Sunhare Pal

Saturday, June 23, 2012


एक सूखा गुलाब

छूट गया हूं मैं
पिछली कक्षा में पढ़ी
किताब की तरह
कर लिए गये 
जिसके सारे सवाल हल
और पाठों का भी
दोहरान हो चुका
कई बार
परीक्षाओं के उपले
थेप चुका हूं बार-बार
फेल और पास की
किश्ती खै चुका हूं
जाने कितनी बार
हो चुके है सब बेमानी
इम्तहान और परिणाम
की घोषणा के साथ 
बदल गया है साल
पीले पड़े गये कागज तमाम
किताब हुई पुरानी
जिस पर लगें है आज भी
निशान, अर्थो और महत्वपूर्ण 
टिप्पणियों के साथ
पहले जैसे अब नहीं भरती
पुरानी किताब 
फरफराहट का दंभ
आ गई है नई किताब 
जो सहेज दी गई 
भूरे कवर के साथ
नई किताब की चमक में
छिप गया 
पिछले साल का कलेण्डर
जिसपर आया था कभी
वेलेन्टाईन एक बार
कह रहा है आज भी
भीतर रखा
एक सूखा गुलाब

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